Wednesday, February 10, 2021 / Categories: Teachings, Sadhana, Pujya Bapuji Prabhu Param Prakash Ki Aur Le Chal (Hindi) प्रभु परम प्रकाश की ओर ले चल (हिन्दी) संसार का अज्ञान-अंधकार मिटाने के लिए जो अपने-आपको जलाकर प्रकाश देता है, संसार की आँधियाँ उस प्रकाश को बुझाने के लिए दौड़ पड़ती हैं । उसके बावजूद भी जैसे सूर्य अपना प्रकाश देने का स्वभाव नहीं छोड़ता वैसे ही संत भी करुणा और परहितपरायणता का स्वभाव नहीं छोड़ते हैं । दुष्ट लोगों द्वारा की जानेवाली टीका-टिप्पणियाँ, निंदा, कुप्रचार और अन्यायी व्यवहार की आँधियों को सहते हुए भी सतंजन किस प्रकार समाज के कल्याण में रत रहते हैं यह ‘प्रभु ! परम प्रकाश की ओर ले चल...’ नामक इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है । इसमें वर्णित है : * गहन अंधकार से प्रभु परम प्रकाश की ओर ले चल... (महात्मा बुद्ध की सीख)* कैसी है दुष्टता की दुनिया ? (मार्टिन लूथर एवं एक शिष्य का संवाद) * क्या है समझदारी की पगडंडी ?* संत ऐसे दुष्टजनों को क्यों नहीं बदलते ?* सत्यानाश कर डालने के बाद पश्चात्ताप से क्या लाभ !* अपनी पीढ़ियों को नरकगामी बनानेवाले लोग* श्री रामकृष्ण परमहंस, शिर्डीवाले साँईंबाबा, संत एकनाथजी, स्वामी विवेकानंदजी, दार्शनिक सुकरात, संत तुकारामजी, ऋषि दयानंदजी आदि संतों पर दुष्टों व निंदकों ने कितना जुल्म किया !* मूर्खता कर हम अपने जीवन का ह्रास क्यों करें ? * ...ऐसे लोग अमृत को भी विष बनाकर ही पेश करते हैं* हजरत मुहम्मद ने दी बेवफा शिष्य को प्रयोगात्मक सीख* यह बात सत्य है * असत्य इतनी जल्दी क्यों फैल जाता है ?* बलिदान का बल* अचलता का आनंद* ये हैं विकास के वैरी * उन्हें कुएँ में कूदना ही है तो कैसे रोका जाय !* पामरजनों की यह कैसी विचित्र रीति है ?* सिंधी जगत के महान संत श्री टेऊँरामजी, संत कँवररामजी को निंदकों ने कितना सताया !* विकास के वैरियों से सावधान* दिव्य दृष्टि* जीवन की सार्थकता* ओ चंद रुपयों के पीछे अपनी जिंदगी बेचनेवालो ! सनातन संस्कृति पर प्रहार करनेवाले गद्दारो ! ओ संतों के निंदको ! ओ भारतमाता के हत्यारो ! इतिहास उठाकर देखो तुम्हारे जैसे नराधमों की क्या दुर्दशा हुई है, विचार करो और सावधान हो जाओ ! अद्भुत है गीता ग्रंथ ! Print 240 Rate this article: 5.0 AshramEstorehttps://www.ashramestore.com/Prabhu_!_Param_Prakash...:_Hin-249 Please login or register to post comments.
जब गुरू के ऊपर कीचड़ उछाला जायेगा, मेवाभगत पलायन हो जाएँगे, सेवाभगत ही टिकेंगे। जब गुरू के ऊपर कीचड़ उछाला जायेगा, मेवाभगत पलायन हो जाएँगे, सेवाभगत ही टिकेंगे। जब गुरू के ऊपर कीचड़ उछाला जायेगा, मेवाभगत पलायन हो जाएँगे, सेवाभगत ही टिकेंगे।
आप भगवान को किस रूप में देखना चाहते हैं चुनाव आप पर निर्भर है । आप भगवान को किस रूप में देखना चाहते हैं चुनाव आप पर निर्भर है । आप भगवान को किस रूप में देखना चाहते हैं चुनाव आप पर निर्भर है ।
तत्त्वज्ञानी गुरु मिल भी गये तो उनमें श्रद्धा होना और सदा के लिए टिकना दुर्लभ है। तत्त्वज्ञानी गुरु मिल भी गये तो उनमें श्रद्धा होना और सदा के लिए टिकना दुर्लभ है। तत्त्वज्ञानी गुरु मिल भी गये तो उनमें श्रद्धा होना और सदा के लिए टिकना दुर्लभ है।