Bhajnamrit (Hindi)
भजनामृत (हिंदी)
"भजनामृत" - जीवन में जहाँ शांति, धैर्य और गंभीरता की जरूरत है वहीं आनंद और उल्लास की भी जरूरत है । भारतीय संस्कृति की यह विशेषता रही है कि मानव-मन की अटकलों को जाननेवाले ऋषियों ने आत्मा-परमात्मा के ज्ञान से युक्त पदों, काव्यों, भजनों आदि की पहले से व्यवस्था कर रखी है । आज का मानव पाश्चात्य कल्चर से प्रभावित होकर अश्लील गाने बनाने और गाने लगा है जिससे न केवल वह स्वयं अपितु पूरी मानवता चारित्रिक पतन की ओर बढ़ती जा रही है । संत कबीरजी, तुलसीदासजी, सूरदासजी, नरसी मेहताजी, भक्तिमती मीरा बाई, गंगा सती आदि के भजनों एवं पदों ने करोड़ों-करोड़ों दिलों को हरि-रस से तृप्त किया है और अभी भी कर रहे हैं । पद एवं काव्य के माध्यम से आनंद के अनुभव के साथ-साथ जीवन के वास्तविक सत्य, परमात्म-आनंद से जो तृप्त करे वह है भजन । शास्त्र कहते हैं - रसनं लक्षणं भजनम् । अंतरात्मा का रस जिससे उभरे, उसका नाम है भजन । भजन करते-करते भजनमय हो जायें, जिसकी सत्ता से भजन हो रहा है उस चैतन्य में हम खो जायें । ऐसे ही आनंदित और भावविभोर कर देनेवाले भजनों का संकलन है पुस्तक ‘भजनामृत’ ।
इसमें है :
* सत्संग बिन सत्कर्म न सूझे...
* हो गई रहेमत तेरी...
* अगर है ज्ञान को पाना...
* जंगल में जोगी बसता है...
* पीकर शराबे मुर्शिद मस्ताना हो गया हूँ...
* घट ही में अविनाशी रे...
* अब मैं अपना ढोल बजाऊँ...
* काहे रे बन खोजन जाई...
* गुरुदेव दया कर दो मुझ पर...
* आशिक मस्त फकीर हुआ जब...
* ऐसो खेल रच्यो मेरे दाता ज्याँ देखूं वाँ तू को तू...
* सुन लो चतुर सुजान निगुरे नहीं रहना...
* निरंजन वन में साधु अकेला खेलता है...
* सीखो आत्मज्ञान को...
* सेवा कर ले रे गुरु की...
* ऐसी करी गुरुदेव दया, मेरा मोह का बंधन तोड़ दिया...
* गुरुभक्तों के खुल गये भाग, जब गुरुसेवा मिले...
* गुरुजी मैं तो एक निरंजन ध्याऊँ...
* कहाँ जाना निरबाना...
* मुझको मुझमें आने दो...
* सोऽहम् सोऽहम् बोलो...
* देखा अपने आपको मेरा दिल दीवाना हो गया...
* सद्गुरु पइयाँ लागूँ...
* अकल कला खेलत नर ज्ञानी...
* तेरे फूलों से भी प्यार तेरे काँटों से भी प्यार...
* जब अपने ही घर में खुदाई है...
* साधो ! चुप का है निस्तारा...
* मेरा सत् चित् आनंदरूप कोई कोई जाने रे...
* शिवोऽहं का डंका बजाना पड़ेगा...
* मन मस्त हुआ तब क्यों बोले...
* न मैं बंदा न खुदा था...
* तेरे दरस पाने को जी चाहता है...
* रे मन मुसाफिर ! निकलना पड़ेगा...
* ओ काया गढ़ के वासी...
* चलो चलें हम बेगम पुर के गाँव में...
* मुझे मेरी मस्ती कहाँ ले के आई...
* मुबारिक हो...
* तज रे मन हरि विमुखन को संग...
* मिलता है सच्चा सुख केवल, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में...
* मुनि कहत वशिष्ठ विचारी...
* जो आनंद संत फकीर करे...
* अब मैं किस बिध हरिगुन गाऊँ...
* गुरु की सेवा साधु जाने...
* उधो ! मोहे सदा संत सदा अति प्यारे...
* ज्योत से ज्योत जगाओ सद्गुरु...
* दरबार में सच्चे सद्गुरु के, दुःख दर्द मिटाये जाते हैं...